आज़ ये क़ायनात और होती
उनकी आँखों में लाख नगमे हों लब जो हिलते तो बात और होती लाख तारे हों शब के दामन में चाँद दिखता तो रात और होती इश्क बस फ़लसफ़ा न होता तो आज़ ये क़ायनात और होती हर एक चेहरे में तुम नज़र आते उफ़ ये आदम की ज़ात और होती