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Showing posts from 2018

When I summoned the Universe to dial a trunk call for me

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Source: Internet It had been over 48 hours and I was unable to reach out to him. In these times of information and communication technology, I couldn’t get to him through a phone or otherwise. I did not know what to do, where to find him. We had no common friends either, so that I could ask them where he had been or how he was doing. The only thing common between us was this Universe. And God. After waiting patiently to hear from him for long 48 hours, I thought of exploring the last opportunity I could think of to connect to him. I had heard of telepathy. I tried using it. But, perhaps it needs some kind of training. So, I failed. I cried. And pleaded God for help. I summoned the Universe to connect me with him. It was like asking the Universe to dial a trunk call for me. Yes, in that moment I believed that the Universe could be a telephone operator (or for that matter a post man, the sender, the receiver, the medium or the message itself). With my fingers I wrote on the th

The World of Satyajit Ray

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Satyajit Ray as a film maker Born on May 02, 1921 in Calcutta, Satyajit Ray doesn’t need an introduction. Very fond of watching films since his childhood Ray wanted to pursue a  a career in graphic designing. Films were his first love and music second. He used to watch all the American films being shown in Calcutta and note down all the credits in a small pocket diary with a small note of rating for each of them. An opportunity to watch Bicycle Thieves on a visit to London for work laid the way for him to make his first film Pather Panchali in the way the Bicycle Thieves was made. He decided to chose unknown actors and shooting on real locations. He was not just watching Indian and foreign films with a keen interest, he was also writing about them with a critical point of view. Before entering into film making he thought of being a film journalist after he got a chance to meet Renoir. He observed and explained the problems with Indian films. He wro

पुरानी रौशनी के पार...

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तस्वीर: प्रदीपिका सारस्वत मैं जब भी अपने लिए कुछ लिखने बैठती हूं तो बड़ी कोफ्त होती है जब मेरा वाक्य मैं से शुरू हो रहा होता है. इस मैं को मिटा देने की तमाम कोशिशों के बाद भी मैं ऐसा नहीं कर पाती. और तब मैं खुद को घुटनों पर सर रखे, शून्य में ताकते, मुस्कुराते देखती हूं. उस मुस्कुराहट की रौशनी में पढ़ी जा सकने वाली इबारत कहती है कि ‘ मैं शायद समस्या है ही नहीं. मैं को तवज्जो देना समस्या है. मैं अगर है तो उसे रहने दो, जैसे ये कमरा है, कुर्सी है, किताब है. उसके होने पर इतना शोरगुल क्यों ? यू शुड मेक पीस विद ‘ आइ. ’’ ठीक. कुर्सी पर बैठकर सिखती हुई मैं, सामने घुटनों पर सर रखे शून्य में देखकर मुस्कुराती मैं के सामने सर झुका कर मान लेती हूं. मैं देखती हूं कि मैं कभी खुद का, तो कभी कुछ अपने जैसों का हाथ पकड़ कर खुद को वहां ले जा सकती हूं जहां बताया जाता रहा है कि रौशनी नहीं पहुंची है. उन नियमों के पार जहां विज्ञान जाने की कोशिश में तो है, पर उसे वहां पहुंचने में अभी समय लगेगा. आप तब तक कहानियों में विश्वास नहीं करते जबतक आप कहानियां जीने नहीं लगते. आप विज्ञान पर भी तब तक यकीन नहीं

फैंटम थ्रैड के बहाने: प्यार में डूबी हुई औरत और पर्दे के पीछे छुपा हुआ आदमी

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ज़िंदगी सेल्युलॉइड :   पहली किश्त मुझे लगता है अंग्रेज़ी फिल्मों की शौकीन ऐसी कोई लड़की नहीं हो सकती जिसे डेनियल डे लुइस से प्यार न हो.   60  साल के हो चुके इस अभिनेता की चमकती आंखों और रौशन मुस्कुराहट को जब भी स्क्रीन पर देखती हूं , हमेशा सोचती हूं कि उन्हें हकीकत में देखना कैसा होगा . डे लुइस अपनी आखिरी फिल्म में एक ऐसे मर्द रेनॉल्ड वुडकॉक के तौर पर दिखते हैं जिसके लिए उसका काम , और काम में खुद को डुबाए रखना सबसे बड़ी प्राथमिकता है. या कहूं तो काम मिस्टर वुडकॉक के लिए वो पर्दा है जिसके पीछे छुप जाने पर वो सोचते हैं कि कोई उन्हें देख नहीं रहा है , वो खुद भी नहीं. लेकिन ये फिल्म मुझे डेनियल डे लुइस से ज़्यादा एल्मा के बारे में सोचने पर मजबूर करती है. हां , एल्मा का किरदार निभाने वाली विकी क्रीप्स के बारे में नहीं , लेखक-निर्देशक पॉल थॉमस एंडरसन के गढ़े किरदार एल्मा के बारे में. एल्मा एक छोटे शहर की लड़की है. बहुत संवेदनशील है. जिसे हम अंग्रेज़ी में कहें तो वल्नरेबल है.   पर उतनी ही ज़हीन और आत्मविश्वास से लबरेज़ भी. ज़िंदगी उसके लिए एक तोहफा है. वो उस तोहफे के

एक बच्ची को सीता की विरासत सौंपने का ख्वाब देखते हम ग्रीस की हेलेन के बारे में उसे क्या बताएंगे?

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तस्वीर इंटरनेट से (http://www.pravmir.com/the-gospel-and-the-trojan-horse/ ) अभी-अभी एक कहानी पढ़ी, वही ट्रॉय के घोड़े वाली. कल कनॉट प्लेस की एक किताबों की दुकान से एक बच्ची के लिए खरीदी रंग-बिरंगी तस्वीरों वाली किताब में. कहानी है कि ग्रीस की बेहद खूबसूरत रानी हेलेन और ट्रॉय का राजकुमार पेरिस एक दूसरे से प्यार कर बैठते हैं. प्यार में अपनी शादी और बाकी बंधन भूलकर हेलेन राजकुमार पेरिस के साथ ट्रॉय चली जाती है. ट्रॉय यानी अनातोलिया यानी आज का टर्की. ग्रीस और टर्की के बीच में एजियन समुद्र है. ग्रीस के राज मेनेलॉस को जब रानी के चले जाने का पता चलता है तो वो अपनी सेना लेकर ट्रॉय पहुंच जाता है. दस साल तक लड़ाई चलती है. दोनो तरफ के तमाम आदमी मारे जाते हैं. लेकिन ग्रीस की की सेना ट्रॉय के भीतर नहीं पहुंच पाती. तब एक दिन ग्रीक के राजा की तरफ से लड़ रहा ओडीसस एक चाल चलता है. एक लकड़ी के घोड़े में सैनिक छुपा कर उसे ट्रॉय के बाहर छोड़ दिया जाता है. बाकी सेना ग्रीस लौटने लगती है. ट्रॉय वाले इसे अपनी जीत मानकर घोड़े को भीतर ले लेते हैं. रात को घोड़े से सैनिक बाहर निकल कर दरवाज़ा खोलकर वाप