पुरानी रौशनी के पार...
![]() |
| तस्वीर: प्रदीपिका सारस्वत |
मैं जब भी अपने लिए कुछ लिखने बैठती हूं तो बड़ी कोफ्त होती है जब मेरा
वाक्य मैं से शुरू हो रहा होता है. इस मैं को मिटा देने की तमाम कोशिशों के बाद भी
मैं ऐसा नहीं कर पाती. और तब मैं खुद को घुटनों पर सर रखे, शून्य में ताकते,
मुस्कुराते देखती हूं. उस मुस्कुराहट की रौशनी में पढ़ी जा सकने वाली इबारत कहती
है कि ‘मैं
शायद समस्या है ही नहीं. मैं को तवज्जो देना समस्या है. मैं अगर है तो उसे रहने
दो, जैसे ये कमरा है, कुर्सी है, किताब है. उसके होने पर इतना शोरगुल क्यों?
यू शुड मेक पीस विद ‘आइ.’’ठीक. कुर्सी पर
बैठकर सिखती हुई मैं, सामने घुटनों पर सर रखे शून्य में देखकर मुस्कुराती मैं के
सामने सर झुका कर मान लेती हूं.
मैं देखती हूं कि मैं कभी खुद का, तो कभी कुछ अपने जैसों का हाथ पकड़
कर खुद को वहां ले जा सकती हूं जहां बताया जाता रहा है कि रौशनी नहीं पहुंची है.
उन नियमों के पार जहां विज्ञान जाने की कोशिश में तो है, पर उसे वहां पहुंचने में
अभी समय लगेगा. आप तब तक कहानियों में विश्वास नहीं करते जबतक आप कहानियां जीने
नहीं लगते. आप विज्ञान पर भी तब तक यकीन नहीं ला सकते जब तक आप अपने भीतर का
विज्ञान नहीं महसूसने लगते. इसी तरह आप कहानियों और विज्ञान के आगे भी कुछ और का
संभव होना नहीं मान सकते जब तक आप उस नए आयाम को अपने नए आयाम के साथ एक प्लेन में
नहीं आने देते. जब तक आप नहीं हैं, कुछ और भी नहीं है. जैसे आप हैं, बाकी सब कुछ
उस से अलग नहीं हो सकता. मैं ही ब्रह्म हो सकता है, शब्द भी.
ये सब उतना जटिल नहीं है. मेरा एडिटर कहता है कि दुनिया की सबसे जटिल
लगने वाली चीज़ें सबसे सरल हैं. मुझे लगता है, वो सही है. बस आपको फॉर्मुला समझना
होगा. क्या हम सिर्फ एक ही समय और स्थान में मौजूद रह कर जीवन जी रहे हैं? या हमारे एक साथ कई
जगहों और समयों में होने की संभावनाएं हैं? ये सवाल नया नहीं है. पर जब यह एक फिल्म
की कहानी, विज्ञान गल्प या पौराणिक कथा से इतर, अपने वर्तमान में स्वयं से उस यकीन
के साथ पूछा जाए, जिस यकीन से आप पूछते हैं कि क्या हमारे ग्रह से भी इतर जीवन हो
सकता है. तब इस
सवाल का उत्तर खोजने की बेचैनी बढ़ जाती है. ऐसे सवालों से रू ब रू होना कुछ ऐसा
है कि आप एक घने जंगल के मुहाने पर खड़े हैं, और आप नहीं जानते कि भीतर कैसे जाना
है और वहां क्या-क्या हो सकता है. ऐसे में फिर शायद ज़रूरत होती है आपका हाथ थामें
जाने की. अब आप खुद अपना हाथ थामिए या किसी ऐसे को थाम लेने दीजिए जो आपकी तरह
वहां अकेला खड़ा है.

Comments
Post a Comment