क्या हो तुम
जानती हूँ कि कौन हो तुम इसलिए जानना चाहती हूँ कि क्या हो तुम वह शब्द ? जो निकला था पहली बार मेरे नन्हें होठों से और गूंजती है प्रतिध्वनि जिसकी आज भी यादों के खंडहरों में ये बात और है कि सुन नहीं पाती मैं सही सही शब्द लौट जाती हैं ध्वनि तरंगें टकराकर मेरे गिर्द लिपटे समय के आवरण से वह स्पर्श ? जो मिला था मुझे हवा और पानी के बाद बाकी हैं अभी भी निशान जिसके मेरे माथे पर ये बात और है कि छू नहीं पाती मैं सही सही हिस्सा फिसल जाती हैं काँपती उँगलियाँ वर्षों से जमी हृदयहीन स्पर्शों की अनचाही धूल पर एक गंध, स्वाद या छवि ? जो हैं कहीं आज भी मुझमें पर कहाँ ? आ सकोगी तुम मुझे बताने कि तुम शब्द नहीं हो स्पर्श भी नहीं हो गंध, स्वाद और छवि भी नहीं हो तुम एक सवाल भर हो जो पूछती रहूंगी मैं तुमसे ही कि क्या हो तुम ?