Posts

Showing posts from 2016

नहीं होते

दूर तक जाने वालों के हमसफ़र नहीं होते आसमानी परिंदों के सुना है घर नहीं होते चुरा कर ले गए सपनों की सारी गठरियाँ एक शब हम इतना बोझ ढोते वो अ गर रहबर नहीं होते उड़ा करते हैं जब भी देखिए वो आसमानों में ये कैसे मान लें हम आदमी के पर नहीं होते जहाँ साया नहीं जाता, वहां संग याद जाती है जो होते हैं दिलों में साथ वो अक्सर नहीं होते हम उनकी झूठी हमदर्दी पे मर के जी उठें ऐ दिल मगर क़ातिल तो क़ातिल हैं वो चारागर नहीं होते

श्रीनगर से बनारस को चिट्ठी

डियर बनारस, पता है हमेशा की तरह मज़े मैं ही होगे तुम. और ये भी पता है कि जब भी तुम मुझे याद करते होगे एक ज़ोरदार ठहाका लगाकर हंस पड़ते होगे. जैसे तुम फक्कड़ हो तुम्हारे तरीके भी वैसे ही हैं. नाराज़ भी होगे मुझसे तो बताओगे थोड़े ही, बस जब वापस लौटने पर मिल कर गले लगाओगे तो पकड़ थोड़ी और मजबूत हो जाएगी तुम्हारी. खैर, मैं यहां ठीक होकर भी ठीक नहीं हूं. पहले पहल श्रीनगर से मिलकर अच्छा लगा था. खुश थी मैं यहां. पर इन दिनों कुछ भी सही नहीं है इधर. ना तो सुबह को ही ये शहर मुस्कुरा पाता है, ना ही शाम को जी खोल के रो सकता है. अजीब घुटन में मर रहा है. ये जो पहाड़ हैं न इसको अपने कंधे का सहारा दिए हुए, वो खुद भी जलते रहते हैं एक अजीब सी बेचैनी भरी आंच में. और ये जो सारे के सारे चिनार हैं न, दहशतज़दा से, हर वक्त सर नीचा किए न जाने क्या क्या सोचते रहते हैं. हां, डल की तरफ जाती हूं तो थोड़ा सुकून मिलता है, पर उसके पानी पर भी अजीब सी उदासी और वीरानेपन की काई पसरी है इन दिनों. गौर से देखती हूं तो तिल-तिल खत्म होती हुई दिखती है वो भी. बस इस जेहलम को देखकर एक आस बची रहती है. उम्मीद जागती है कि