नहीं होते
दूर तक जाने वालों के हमसफ़र नहीं होते आसमानी परिंदों के सुना है घर नहीं होते चुरा कर ले गए सपनों की सारी गठरियाँ एक शब हम इतना बोझ ढोते वो अ गर रहबर नहीं होते उड़ा करते हैं जब भी ...
थोड़ी आग बची रहने दो थोडा धुआँ निकलने दो, कल देखोगी कई मुसाफिर इसी बहाने आयेंगे...