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हमारा जो कुछ है वह सिर्फ़ हमारा नहीं है: सिद्धार्थ गिगू और राकेश बख्शी की बातचीत के बाद

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तिलिस्म क्या होता है? मैजिक? जादू? माया? या फिर हम कब कहते हैं कि हमने कुछ अलौकिक देख लिया, सुना लिया, जी लिया? क्या होता है जो हमें विस्मय से भर देता है? जिसे कहने के लिए हमारे पास शब्द नहीं होते, पर जो हमसे होकर गुज़रा होता है, हमें छूकर, हमारे भीतर से होकर. या यूँ कहें कि जिसे हम इस दुनिया की बात करने वाले शब्दों में बांध सकते, वही अलौकिक है.  पिछले साल, दिसंबर में गोवा के एक गाँव में, रात को सड़क पर लेटे हुए मैंने एक अलौकिक घटना देखी. उल्कापात. मीटिओर शार. टूटते तारों का गिरना, गिरते जाना. हम कई आकाश प्रेमी वहां लेटे हुए, उन टूटते तारों को गिन रहे थे. यूँ तो हम अक्सर ही कुछ न कुछ अलौकिक महसूस करते हैं, पर वह इतना क्षणिक होता है कि इससे पहले कि हमारी इंद्रियाँ, हमारा दिमाग उसे रजिस्टर कर पाए, इससे पहले कि हमारे शब्द उस तक पहुँच पाएँ, वह होकर खत्म हो चुकता है. वह उल्कापात लंबा चला था, कोई चार घंटे. हम सब उसे इस तरह देखते रहे थे जैसे वह हमारी उन सारी इच्छाओं, आकांक्षाओं और जिज्ञासाओं का प्रतीक था जो हमें अपने आप की, अपनी इंद्रियों की सीमाओं से आगे बढ़ जाने के लिए उकसाती हैं. हम सब...