बाख़बर !! होशियार !! ' अच्छे दिन ' तशरीफ़ ला रहे हैं !
कब से सुन रही हूँ कि अच्छे दिन आने वाले हैं, अच्छे दिन आने वाले हैं. सुनकर कोई खास किस्म के एक्साइटमेंट टाइप की फीलिंग मुझे तो कम से कम नहीं ही आती, अलबत्ता हँसी जैसी ज़रूर आती है कि लोग इतना पगलाए हुए क्यूँ हैं. वैसे पगलाना बुरी बात नहीं, पर तभी तक जब तक इस पागलपन का सिर और पैर हो. मतलब कुछ समझ तो आये कि जिस बात पर आप इतना पगलाए हुए हैं उसकी कुछ अन्दर की खबर भी है आपको कि बस खरबूजों को देख कर खरबूजे हुए जा रहे हैं. कभी कभी वक़्त मिलता है तो ये भी सोच लेती हूँ कि (इन पगलाए हुए लोगों) के लिए अच्छे दिन का मतलब आख़िर होता क्या होगा, या क्या क्या होता होगा. पर अब इंतज़ार के पल ख़त्म क्योंकि इस समय इन बहु प्रतीक्षित अच्छे दिनों का निर्धारण करने वाली घड़ी भारतीय लोकतंत्र का दरवाज़ा बड़े जोर शोर के साथ खटखटा रही है. नमो पार्टी, हाँ भई नमो पार्टी जादुई आंकड़ा 'अपने' दम पर पार कर चुकी है. दुश्मन के ख़ेमे में हताशा के बादल साफ़ दिखाई दे रहे हैं. और अच्छे दिनों का बेसब्री से इंतज़ार करते (पगलाए हुए) लोग तो खैर सुबह से ही ढोल बजा रहे हैं, पटाखे छोड़ रहे हैं, और भी जाने क्या क्या कर रहे है, कह रहे...