बाख़बर !! होशियार !! ' अच्छे दिन ' तशरीफ़ ला रहे हैं !
कब से सुन रही हूँ कि अच्छे दिन आने वाले हैं, अच्छे दिन आने वाले हैं. सुनकर कोई खास किस्म के एक्साइटमेंट टाइप की फीलिंग मुझे तो कम से कम नहीं ही आती, अलबत्ता हँसी जैसी ज़रूर आती है कि लोग इतना पगलाए हुए क्यूँ हैं. वैसे पगलाना बुरी बात नहीं, पर तभी तक जब तक इस पागलपन का सिर और पैर हो. मतलब कुछ समझ तो आये कि जिस बात पर आप इतना पगलाए हुए हैं उसकी कुछ अन्दर की खबर भी है आपको कि बस खरबूजों को देख कर खरबूजे हुए जा रहे हैं.
कभी कभी वक़्त मिलता है तो ये भी सोच लेती हूँ कि (इन पगलाए हुए लोगों) के लिए अच्छे दिन का मतलब आख़िर होता क्या होगा, या क्या क्या होता होगा. पर अब इंतज़ार के पल ख़त्म क्योंकि इस समय इन बहु प्रतीक्षित अच्छे दिनों का निर्धारण करने वाली घड़ी भारतीय लोकतंत्र का दरवाज़ा बड़े जोर शोर के साथ खटखटा रही है. नमो पार्टी, हाँ भई नमो पार्टी जादुई आंकड़ा 'अपने' दम पर पार कर चुकी है. दुश्मन के ख़ेमे में हताशा के बादल साफ़ दिखाई दे रहे हैं. और अच्छे दिनों का बेसब्री से इंतज़ार करते (पगलाए हुए) लोग तो खैर सुबह से ही ढोल बजा रहे हैं, पटाखे छोड़ रहे हैं, और भी जाने क्या क्या कर रहे है, कह रहे हैं. जो थोड़ा कम बौराए हैं वो टीवी के सामने पड़े सोफों, कुर्सियों, बिस्तरों पर ही उछल रहे हैं. और हाँ फ़ेसबुक पर बकैतियाँ करने में अस्त-व्यस्त हैं.
पर अब देखना यह है कि अच्छे दिन किन किन शक्लों में आते हैं और किस किस के लिए आते हैं. एक राईट विंग पार्टी को ( जी वही, हमारी नमो पार्टी) को इतना बड़ा जनादेश मिल जाना अपने आप में एक बड़ी बात है. अब ग़ौर करने वाली बात ये है कि अधिकतर बड़े राज्यों से आये इस जनादेश और मणिपुर, मिज़ोरम, त्रिपुरा और सिक्किम जैसे छोटे राज्यों की परिस्थितिगत उम्मीदों के बीच किस तरह का तालमेल बिठाया जाएगा. जम्मू व कश्मीर में भी हालांकि पार्टी को छह में से तीन सीटें मिलीं हैं पर सरकार, सेना और लोकतंत्र तीनों से ही नाउम्मीद वहां की जनता में मोदी किस प्रकार भरोसा जगा पाते हैं यह देखना भी इंटरेस्टिंग होगा. कश्मीर पर मोदी की स्ट्रेटेजी पुरानी सरकारों से बदतर होगी या बेहतर, ये अभी वक़्त बताएगा. ( पर्सनली मुझे किसी करिश्मे की उम्मीद नहीं )
अच्छे दिनों का इंतज़ार तो तथा-कथित रूप से अम्बानी-अडानी को भी है, और साथ ही इनके अच्छे दिनों का सीधा सम्बन्ध हमारी प्राकृतिक संपदाओं के दोहन और महंगाई के बोझ से भी है.तो मिडल क्लास से लेकर जंगलों पर निर्भर आदिवासियों तक के अच्छे दिनों की ज़िम्मेदारी भी मोदी के छप्पन इंच के सीने ( कन्धों का माप पता नहीं ना ) पर आ जाती है.
अगर लड़कियों और महिलाओं के नज़रिए से अच्छे दिनों का आकलन किया जाए तो तस्वीर बहुत साफ़ नहीं दिखती मुझे. ( सॉरी लड़कियों, अपने डिंपल वाले राहुल बाबा को तो फ़ेसबुक वाले लोगों ने नानी के घर भेज दिया. अरे वही न करते थे वीमेन एम्पावरमेंट की बात. याद नहीं तो अर्नब दा से पूछ लेना. ) अब जब चारों और नमो नमो का शोर है तो कहीं ऐसा न हो कि हमारे हॉट पैन्ट्स पहनने पर पाबन्दी लग जाये और हमें यूनिवर्सिटी को मंदिर समझते हुए दुपट्टे से सर ढक कर ही वहां जाने का फ़तवा मिल जाये. वो वैलेंटाइन डे वाले ड्रामे तो याद ही होंगे न आप लोग को. अरे वही जेब में राखियाँ ले कर घूमने वाले ** सैनिक लोग. मनु संहिता टाइप की कोई किताब कहीं दिखे तो प्लीज आप लोग छुपा का रख दीजियेगा, कम से कम नमो पार्टी वालों के हाथ तो न ही लगने दीजियेगा. वैसे छुपाने की बात तो मैंने अपना और आप लोगों का मन रखने को ही कह दी थी. सपा के जीतने के बाद जिस तरह लोग अपने हथियार निकाल के साफ़ कर रहे थे, नमो की जीत के बाद ब्राह्मणों के घर में यही सब किताबें न निकलेंगी तो क्या कोएल्हो की एलेवेन मिनट्स निकलेगी.
दलित और मुस्लिमों के अच्छे दिनों के बारे में क्या कहूँ, नमो खुद ही इस बारे में कुछ सकारात्मक बोलें ( बोलने से बेहतर कुछ करें ) तो ज़्यादा अच्छा हो. इसके आगे एक मुद्दा और है जिसपर नमो के रुख का मुझे इंतज़ार है, और वो है आरक्षण. मैं तो इस बारे में अपना मुंह, सॉरी अपना ब्लॉग नहीं ही खोलूंगी. रही बात काले धन और भ्रष्टाचार की तो इस पर बात करने का हक़ तो अपने बाबा रामदेव का बनता है, निकलवएं अब वे आराम से स्विस खातों की लिस्ट. अब तो सरकार भगवा चोला ( सॉरी दुपट्टा, वो भी नमो के नाम वाला ) पहनने वालों की है. मैं तो अब चुप बैठ कर अच्छे दिनों का इंतज़ार करुँगी. क्या पता किसी शाम मेरे घर भी आ टपकें अच्छे दिन.
कभी कभी वक़्त मिलता है तो ये भी सोच लेती हूँ कि (इन पगलाए हुए लोगों) के लिए अच्छे दिन का मतलब आख़िर होता क्या होगा, या क्या क्या होता होगा. पर अब इंतज़ार के पल ख़त्म क्योंकि इस समय इन बहु प्रतीक्षित अच्छे दिनों का निर्धारण करने वाली घड़ी भारतीय लोकतंत्र का दरवाज़ा बड़े जोर शोर के साथ खटखटा रही है. नमो पार्टी, हाँ भई नमो पार्टी जादुई आंकड़ा 'अपने' दम पर पार कर चुकी है. दुश्मन के ख़ेमे में हताशा के बादल साफ़ दिखाई दे रहे हैं. और अच्छे दिनों का बेसब्री से इंतज़ार करते (पगलाए हुए) लोग तो खैर सुबह से ही ढोल बजा रहे हैं, पटाखे छोड़ रहे हैं, और भी जाने क्या क्या कर रहे है, कह रहे हैं. जो थोड़ा कम बौराए हैं वो टीवी के सामने पड़े सोफों, कुर्सियों, बिस्तरों पर ही उछल रहे हैं. और हाँ फ़ेसबुक पर बकैतियाँ करने में अस्त-व्यस्त हैं.
पर अब देखना यह है कि अच्छे दिन किन किन शक्लों में आते हैं और किस किस के लिए आते हैं. एक राईट विंग पार्टी को ( जी वही, हमारी नमो पार्टी) को इतना बड़ा जनादेश मिल जाना अपने आप में एक बड़ी बात है. अब ग़ौर करने वाली बात ये है कि अधिकतर बड़े राज्यों से आये इस जनादेश और मणिपुर, मिज़ोरम, त्रिपुरा और सिक्किम जैसे छोटे राज्यों की परिस्थितिगत उम्मीदों के बीच किस तरह का तालमेल बिठाया जाएगा. जम्मू व कश्मीर में भी हालांकि पार्टी को छह में से तीन सीटें मिलीं हैं पर सरकार, सेना और लोकतंत्र तीनों से ही नाउम्मीद वहां की जनता में मोदी किस प्रकार भरोसा जगा पाते हैं यह देखना भी इंटरेस्टिंग होगा. कश्मीर पर मोदी की स्ट्रेटेजी पुरानी सरकारों से बदतर होगी या बेहतर, ये अभी वक़्त बताएगा. ( पर्सनली मुझे किसी करिश्मे की उम्मीद नहीं )
अच्छे दिनों का इंतज़ार तो तथा-कथित रूप से अम्बानी-अडानी को भी है, और साथ ही इनके अच्छे दिनों का सीधा सम्बन्ध हमारी प्राकृतिक संपदाओं के दोहन और महंगाई के बोझ से भी है.तो मिडल क्लास से लेकर जंगलों पर निर्भर आदिवासियों तक के अच्छे दिनों की ज़िम्मेदारी भी मोदी के छप्पन इंच के सीने ( कन्धों का माप पता नहीं ना ) पर आ जाती है.
अगर लड़कियों और महिलाओं के नज़रिए से अच्छे दिनों का आकलन किया जाए तो तस्वीर बहुत साफ़ नहीं दिखती मुझे. ( सॉरी लड़कियों, अपने डिंपल वाले राहुल बाबा को तो फ़ेसबुक वाले लोगों ने नानी के घर भेज दिया. अरे वही न करते थे वीमेन एम्पावरमेंट की बात. याद नहीं तो अर्नब दा से पूछ लेना. ) अब जब चारों और नमो नमो का शोर है तो कहीं ऐसा न हो कि हमारे हॉट पैन्ट्स पहनने पर पाबन्दी लग जाये और हमें यूनिवर्सिटी को मंदिर समझते हुए दुपट्टे से सर ढक कर ही वहां जाने का फ़तवा मिल जाये. वो वैलेंटाइन डे वाले ड्रामे तो याद ही होंगे न आप लोग को. अरे वही जेब में राखियाँ ले कर घूमने वाले ** सैनिक लोग. मनु संहिता टाइप की कोई किताब कहीं दिखे तो प्लीज आप लोग छुपा का रख दीजियेगा, कम से कम नमो पार्टी वालों के हाथ तो न ही लगने दीजियेगा. वैसे छुपाने की बात तो मैंने अपना और आप लोगों का मन रखने को ही कह दी थी. सपा के जीतने के बाद जिस तरह लोग अपने हथियार निकाल के साफ़ कर रहे थे, नमो की जीत के बाद ब्राह्मणों के घर में यही सब किताबें न निकलेंगी तो क्या कोएल्हो की एलेवेन मिनट्स निकलेगी.
दलित और मुस्लिमों के अच्छे दिनों के बारे में क्या कहूँ, नमो खुद ही इस बारे में कुछ सकारात्मक बोलें ( बोलने से बेहतर कुछ करें ) तो ज़्यादा अच्छा हो. इसके आगे एक मुद्दा और है जिसपर नमो के रुख का मुझे इंतज़ार है, और वो है आरक्षण. मैं तो इस बारे में अपना मुंह, सॉरी अपना ब्लॉग नहीं ही खोलूंगी. रही बात काले धन और भ्रष्टाचार की तो इस पर बात करने का हक़ तो अपने बाबा रामदेव का बनता है, निकलवएं अब वे आराम से स्विस खातों की लिस्ट. अब तो सरकार भगवा चोला ( सॉरी दुपट्टा, वो भी नमो के नाम वाला ) पहनने वालों की है. मैं तो अब चुप बैठ कर अच्छे दिनों का इंतज़ार करुँगी. क्या पता किसी शाम मेरे घर भी आ टपकें अच्छे दिन.
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ReplyDeleteअच्छा ! बहुत अच्छा ! आपके घर भी आयें अच्छे दिन ऐसी कामना है :)
ReplyDeleteशुभकामनाओं के लिए धन्यवाद प्रवीण जी :)
Deleteइंतज़ार रहेगा अच्छे दिनों का
I believe this अच्छे दिन idea is just a state of mind , anyways good piece of writing .Thanks!
ReplyDeleteI believe the idea अच्छे दिन is just a state of mind ,anyways very good piece of writing .Thanks!
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