इनफ़िडल
अगर ये कहानी, ‘एक लड़की थी’ से शुरू होगी तो क्या आप इसे पढ़ैंगे? शायद हाँ, शायद नहीं. पर ये कहानी एक लड़की थी से ही शुरू होती है. कहानी मेरी है. लेकिन शुरू इस लड़की से होती है. मैं उन दिनों खुद से भी बातचीत बंद कर चुका था जब उसने मुझे मैसेज किया था कि मैं ज़िरो घाटी हूँ और अब मुझे आगे कहाँ जाना चाहिए. वो उस अनसुनी-अनदेखी जगह तक पहुँचने का रास्ता जानना चाहती थी, जिसका मैंने किसी मुलाक़ात में ज़िक्र किया था. मिथुन जानवरों और केले के जंगली पेड़ों से भरी उस घाटी में धान की नई फ़सलों से गुज़रते हुए उसे देख रहा था मैं, बिना किसी कैमरे, बिना किसी कोशिश के. मैं पश्चिमी घाट के समंदर के किनारे टिका हुआ था, जब मुझे उसका मैसेज मिला. मुझे उसके पागलपन पर ज़रा भी हैरत नहीं हुई थी. बस यही पागलपन तो है जो हम दोनों के बीच एक सा है. उसने मुझे बताया था कि वो अकेली नहीं थी, कोई था उसके साथ. मैं नहीं जानना चाहता था कि उसके साथ कौन था. मैं ये भी नहीं जानना चाहता था कि वो कहाँ थी, क्यों थी. मैं उसके बारे में, अपने बारे में कुछ भी नहीं जानना चाहता था. क्योंकि कुछ जानने की शुरूआत के बाद, अगर दिलचस्पी हो...