...देहाती नहीं...सिर्फ औरत !
देहाती औरत ...!! शहरी औरत, कामकाजी औरत, घरेलू औरत, शरीफ औरत, बदचलन औरत... और भी पता नहीं क्या क्या कहते हो तुम उसे. कभी फैमिनिस्ट कह कर उसे तुम अपने उन अधिकारों के लिए तुमसे जूझती औरत के पोस्टर में तब्दील कर देते हो, जिन अधिकारों का तुमसे कोई वास्ता ही नहीं. तो कभी उसकी बदहाली और लाचारी की कहानियां अख़बारों में पढ़कर शोक प्रकट करने का ढोंग रचते हो. उसे समझ नहीं आता कि उसका औरत होना तुम्हारे लिए इतना बड़ा कौतूहल क्यों है. क्या सिर्फ इसलिए कि तुम खुद एक औरत नहीं हो? इन विशेषणों को उस से जोड़ कर इतनी तूल देने का अर्थ क्या है आखिर? तुम उसके सम्मोहन में इतना गहरे डूबे हो कि तुम स्वयं अपने बारे में नहीं सोच पाते? स्त्री विमर्श, नारी उत्थान ...कभी पुरुष विमर्श अथवा उत्थान की आवश्यकता महसूस नहीं हुई तुम्हें? क्या तुम इतने आदर्श हो कि सुधार की कोई सम्भावना नहीं तुम मे? सुनो पुरुष, औरत तुम्हारी प्रतिद्वंदी नहीं पूरक है. तुम उस के स्वामी भी नहीं हो. उसे कोई अधिकार देने की चेष्टा न करो और ना ही अधिकार छीनने का झूठा गर्व पालो. ये तथाकथित अधिकार प्राकृतिक रूप से उसके पास सुरक्षित हैं. अध...