नीला अम्बर, नदी, समंदर...
नीला आसमान, नीली नदी. अलस्सुबह तेज़ तेज़ बह उठी. आसमान हैरान. क्यों ऐसी उतावली हो ? इतनी जल्दी ? तुम तो सो कर भी नहीं उठतीं इस वक़्त. क्या हुआ जो यूँ चली जा रही हो, तेज़कदम. और ये क्या ? अधमुंदी आखों से क्या दीखेगा तुम्हें ? बहा दोगी दो चार गाँव. अरे ! सुनती भी नहीं कुछ ! क्या गुनगुनाये जा रही हो ये ? धीमे स्वर में ! बताओगी भी...?
ओहो! तंग ना करो. नदी मुस्कुराती, गुनगुनाती बहती रही. तेज़ तेज़. अपनी ही धुन में है. अरे ! अरे ! बचा के ! आसमान ने चेताया. उलट ही दोगी क्या नाव ? हे हे हे... नदी खिलखिलाई. उछाल दिया थोड़ा पानी नाव पर. मुस्कुरा दिया आसमान. मुस्कुरा दिया नाव पर का नौजवान जोड़ा. एक ने हाथ बढा कर सहला दिया नदी का बदन. उड़ चली नदी दोगुने उत्साह से.
नदी की आँखें बंद थीं. मुस्कुराहट भी थी पनीले होठों पर. प्रियतम को देख रही हो जैसे. साक्षात्. अब आसमान कुछ कुछ समझा. अपनी सफ़ेद होती दाढ़ी को हिला कर मुस्कुराया. बचपन बीत गया इसका. लगता है बीती रात देख लिया इसने भी वही सपना. वही पुराना सपना जो हर नदी के दिल में पलता रहा है. पर देर तक मुस्कुरा न सका. उदासी ने उसके चेहरे की सफ़ेद झुर्रियों को और ही सफ़ेद कर दिया.
चली जाएगी अब ये भी. भूल कर मुझे. फिर याद आयेंगे मुझे इसके नन्हें नन्हें उत्सुकता भरे प्रश्न. ये सूरज कहाँ से आता है ? ये चंदा मुझे तंग क्यूँ करता है ? आप इतने बड़े कैसे हो ? कैसे सहूंगा मैं फिर एक बार वही यातना. अपने ह्रदय के टुकड़े को किसी और के ह्रदय में समाते देखने की. पर नहीं. यही तो है मेरी नियति. ठंडी सांस लेकर सोचा आसमान ने.
समंदर हमेशा से ही आसमान को भाया नहीं है. भोली नदियों को मिलन के मीठे सपने दिखा कर खींचता रहा है अपनी ओर. इतनी नदियाँ ओर एक ही समंदर ! ज्यादती है ये तो. पर आसमान की फ़िक्र से क्या... नदी तो जाएगी ही समंदर से मिलने.
मिलती हैं तो मिला करें कितनी भी नदियाँ. उसका प्रेम सत्य है, समर्पित है...
ओहो! तंग ना करो. नदी मुस्कुराती, गुनगुनाती बहती रही. तेज़ तेज़. अपनी ही धुन में है. अरे ! अरे ! बचा के ! आसमान ने चेताया. उलट ही दोगी क्या नाव ? हे हे हे... नदी खिलखिलाई. उछाल दिया थोड़ा पानी नाव पर. मुस्कुरा दिया आसमान. मुस्कुरा दिया नाव पर का नौजवान जोड़ा. एक ने हाथ बढा कर सहला दिया नदी का बदन. उड़ चली नदी दोगुने उत्साह से.
नदी की आँखें बंद थीं. मुस्कुराहट भी थी पनीले होठों पर. प्रियतम को देख रही हो जैसे. साक्षात्. अब आसमान कुछ कुछ समझा. अपनी सफ़ेद होती दाढ़ी को हिला कर मुस्कुराया. बचपन बीत गया इसका. लगता है बीती रात देख लिया इसने भी वही सपना. वही पुराना सपना जो हर नदी के दिल में पलता रहा है. पर देर तक मुस्कुरा न सका. उदासी ने उसके चेहरे की सफ़ेद झुर्रियों को और ही सफ़ेद कर दिया.
चली जाएगी अब ये भी. भूल कर मुझे. फिर याद आयेंगे मुझे इसके नन्हें नन्हें उत्सुकता भरे प्रश्न. ये सूरज कहाँ से आता है ? ये चंदा मुझे तंग क्यूँ करता है ? आप इतने बड़े कैसे हो ? कैसे सहूंगा मैं फिर एक बार वही यातना. अपने ह्रदय के टुकड़े को किसी और के ह्रदय में समाते देखने की. पर नहीं. यही तो है मेरी नियति. ठंडी सांस लेकर सोचा आसमान ने.
समंदर हमेशा से ही आसमान को भाया नहीं है. भोली नदियों को मिलन के मीठे सपने दिखा कर खींचता रहा है अपनी ओर. इतनी नदियाँ ओर एक ही समंदर ! ज्यादती है ये तो. पर आसमान की फ़िक्र से क्या... नदी तो जाएगी ही समंदर से मिलने.
मिलती हैं तो मिला करें कितनी भी नदियाँ. उसका प्रेम सत्य है, समर्पित है...
बहुत जब्बर लिखी हो, बहुत गहरी भाव लिए हुए समंदर की गहराई अपने में समेटे हुए। बहुत कुछ संपादन की जरूरत भी है लेकिन अति उत्कृष्ट रचना ।
ReplyDeleteआखिरकार आपका ब्लॉग आ ही गया। अच्छा प्रयास है, भविष्य में आपकी उम्दा रचनाओं की प्रतिक्षा रहेगी।
ReplyDeletewow..lovely.
ReplyDeleteNicely written :)
ReplyDeletethank you Shashi :)
Deleteबेहद रोचक अंदाज़ में बयान की है यह मिलन की दास्तान .. बढ़िया ... नदी के बिना सागर नही और सागर में वर्चस्व है नदियों के अपार प्रेम को संजोने का ... आपके इस नवोदित ब्लॉग को फॉलो करूँगा ... आयेज आयेज देखे नदी कितना स्वच पानी भारती है सागर में .... बधाई प्रदीपिका .. आशा है हिन्दी में आपका नाम सही लिखा है ???? - कर्नल सारंग थत्ते ..... समय मिले तो इसे पढ़िए .... धन्यवाद
ReplyDeletehttp://epaper.lokmat.com/lokmatsamachar/newsview.aspx?eddate=09/15/2013&pageno=4&edition=68&prntid=34607&bxid=28274714&pgno=4 sarang.thatte@gmail.com
शुक्रिया कर्नल थत्ते. उम्मीद है आगे भी मेरी कलम आपको निराश न करे.नाम सही लिखा है आपने.एक बार फिर आभार!
Deletea lily girl not made for world's pains, bahut badhiya
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