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Showing posts from September, 2014

साए के बिना

तुम्हारी उँगलियाँ थामती हैं  जो मेरे हाथ चलते तो हो  तुम  साथ  पर तुम्हारा साथ है जैसे साया जिसका साथ होना न होना तय करते हैं रौशनी के कतरे मुझे प्यार है इस साए से पर ये भी सच है  अधूरा नहीं कोई जिस्म किसी साए के बिना

और बरसात आ गई

रात भर की भीगी छोटे कसबे की कमज़ोर सड़क सड़क के छोर पर किसी के इंतज़ार में रात भर का जागा बूढ़ा, पहाड़ी जंगल जंगल के कांपते कन्धों पर धुंध की मोटी, मैली खद्दर खद्दर के धागों में उलझे छोटे छोटे सपने कस्बे भर के और मैं फिर भीग गए और बरसात... ...आ गई

आज फिर...

आज फिर तुझसे मुलाकात करूँ नम हवाओं से तेरी बात करूँ जाने कब से सुबह नहीं देखी चाँद के नाम आज रात करूँ मेरे हिस्से में तू है और दिल है नाम तेरे ये कायनात करूँ जानता हूँ गुनाह है इश्क तेरा चल आज फिर ये वारदात करूँ