आँखों की कविता
जब उसकी नज़रो ने
झाँका मेरी आँखों में
तो समूची सृष्टि में
कोई भी न था
हम दो के सिवा
उस अलौकिक एकांत में
पढ़ता रहा मैं
उसकी आँखों से झरती
अनुराग की कविता
और फिर
आँखें झुक गईं
एकांत खो गया
पर कविता
जीवित है, रहेगी।
झाँका मेरी आँखों में
तो समूची सृष्टि में
कोई भी न था
हम दो के सिवा
उस अलौकिक एकांत में
पढ़ता रहा मैं
उसकी आँखों से झरती
अनुराग की कविता
और फिर
आँखें झुक गईं
एकांत खो गया
पर कविता
जीवित है, रहेगी।
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