एक बच्ची को सीता की विरासत सौंपने का ख्वाब देखते हम ग्रीस की हेलेन के बारे में उसे क्या बताएंगे?

तस्वीर इंटरनेट से (http://www.pravmir.com/the-gospel-and-the-trojan-horse/ )

अभी-अभी एक कहानी पढ़ी, वही ट्रॉय के घोड़े वाली. कल कनॉट प्लेस की एक किताबों की दुकान से एक बच्ची के लिए खरीदी रंग-बिरंगी तस्वीरों वाली किताब में. कहानी है कि ग्रीस की बेहद खूबसूरत रानी हेलेन और ट्रॉय का राजकुमार पेरिस एक दूसरे से प्यार कर बैठते हैं. प्यार में अपनी शादी और बाकी बंधन भूलकर हेलेन राजकुमार पेरिस के साथ ट्रॉय चली जाती है. ट्रॉय यानी अनातोलिया यानी आज का टर्की. ग्रीस और टर्की के बीच में एजियन समुद्र है.

ग्रीस के राज मेनेलॉस को जब रानी के चले जाने का पता चलता है तो वो अपनी सेना लेकर ट्रॉय पहुंच जाता है. दस साल तक लड़ाई चलती है. दोनो तरफ के तमाम आदमी मारे जाते हैं. लेकिन ग्रीस की की सेना ट्रॉय के भीतर नहीं पहुंच पाती. तब एक दिन ग्रीक के राजा की तरफ से लड़ रहा ओडीसस एक चाल चलता है. एक लकड़ी के घोड़े में सैनिक छुपा कर उसे ट्रॉय के बाहर छोड़ दिया जाता है. बाकी सेना ग्रीस लौटने लगती है. ट्रॉय वाले इसे अपनी जीत मानकर घोड़े को भीतर ले लेते हैं. रात को घोड़े से सैनिक बाहर निकल कर दरवाज़ा खोलकर वापस लौट आई सेना को अंदर बुला लेते हैं. भारी मारकाट होती है. राजकुमार पेरिस मारा जाता है और हेलेन को वापस ग्रीस ले जाया जाता है.

इस कहानी को वोल्फगैंग पीटरसन की 2004 की फिल्म ट्रॉय में देखा था. बचपन में भी कभी काठ के घोड़े की ये कहानी पढ़ी थी. लेकिन बड़े होते-होते रानी हेलेन और राजकुमार पेरिस बाद में पढ़ी तमाम कहानियों के किरदारों की भीड़ में कहीं खो गए. और ट्रॉय का घोड़ा ट्रोजन हॉर्स बनकर कंप्यूटर के वायरस में बदल गया.

लेकिन आज इस कहानी को पढ़कर दो बातें सोच रही हूं. पहली यह कि क्या एक साढ़े तीन साल की बच्ची को एक ऐसी रानी की कहानी सुनाई जानी चाहिए जिसे अपने पति से इतर एक परदेसी राजकुमार से प्यार हो जाए? एक छोटी बच्ची को प्यार का क्या अर्थ सिखाया जाय? क्या उसे बताया जाय कि प्यार मर्यादा पुरुषोत्तम की सीता जैसा हो जो अग्निपरीक्षा दे, एक जंगल में अपने बच्चे पाले, और आखिर में ज़मीन में समा जाय, लेकिन पति के खिलाफ एक शब्द न बोले? या फिर उसे हेलेन की कहानी सुनाई जाए?

अपने इतिहास और देवकथाओं से मिले संस्कारों को खुद में समेटे मन का एक हिस्सा कहता है कि उसे सीता के संस्कार दिए जाएं. जबकि आज की दुनिया में जीने वाला, पितृसत्ता से हर दिन जूझता, व्यावहारिक मन कहता है कि शुरुआत से ही उसे बताया जाय कि वह एक व्यक्ति है जिसे वो सबकुछ चुनने का अधिकार है जो वह चाहती है.

लेकिन किसी भी तरह के चुनाव के लिए उसे तैयार करने के लिए बारी-बारी से सब समझाना होगा. उसे कौशल्या, कैकेयी, सीता, द्रौपदी सबकी स्थितियां, परिस्थितियां भी समझानी होंगी और हेलेन, क्लिओपेट्रा और लेडी जेन के हालात भी. ग्लोबल हो चुकी इस दुनिया में उसे पूर्व और पश्चिम, दोनों की तरबियत देनी होगी, दोनों तरफ के मूल्य देने होंगे और दोनों तरफ की कमियों और ग़लतियों से सावधान रहना सिखाना होगा.

अब शायद हम ऐसा नहीं कर सकते कि उसे सीता की विरासत तो दे दें लेकिन हेलन की कहानी उससे छुपा लें. इंटरनेट के इस ज़माने में वो सब तो जान ही लेगी. तो क्यों न उसे खुद ही सब बताया जाय, समझाया जाय.
कहानी के बाद जो दूसरी बात मैंने महसूस की, वो ये कि प्यार और जंग में कहने को सब जायज़ ज़रूर होता है, लेकिन नीति और सदाचार से परे जाकर चाहे प्यार किया जाय या युद्ध, नतीजे किसी के लिए अच्छे नहीं होते. 

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