लॉकडाउन जर्नल डे -16,15: बाहर का अन्याय खत्म करने के लिए हमें भीतर के अन्याय को खत्म करना होगा
तस्वीर: इंटरनेट से मुझे लगता है कि मैं एक चक्रवात के बीच फँसी हूँ. दो अलग दुनियाओं से उठती हवाओं का बना चक्रवात. एक तरफ मेरा कमरा है, जहाँ बुनियादी ज़रूरतें पूरी हो रही हैं, सोशल मीडिया का वो हिस्सा है जहाँ संगीत-साहित्य-विलासिता है. दूसरी तरफ सड़कों, फैक्ट्रियों, रेलवे स्टेशन और अपने फ्लैट्स में फँसे हुए लोग हैं जिन्हें सो पाने के लिए एक गर्म कोने, खाने के लिए रोटियों और जीने के लिए दवाइयों की ज़रूरत है. परसों शाम को मेरे कुछ साथियों ने देशभर में लॉकडाउन के कारण परेशानी का सामना कर रहे लोगों के लिए कुछ फोन नंबर्स जारी किए. तब से अबतक लगातार ज़रूरतमंदों की मदद की गुहार हम तक पहुँच रही है. देर रात चार बजे तक फ़ोन आते रहे हैं. सुबह आठ बजे से फिर बातचीत जारी है. अभी सुबह के दस बजकर बावन मिनट हुए हैं. कुछ देर पहले एक लड़की का फोन आता है. नॉएडा के सेक्टर पचपन में रहती है. कुछ दिनों पहले उसका अपेंडिक्स का ऑपरेशन हुआ है. रात से वह दर्द में है, उसके टाँके खुल गए हैं. पेनकिलर दवाइयाँ खा चुकी है, पर राहत नहीं है. वह रोते हुए बताती है कि उसने सभी सरकारी इमर्जेंसी नंबर्स पर फ...