विश्व की स्त्रियों के लिए निकोलाइ गोगोल का पत्र
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तुम मानती हो कि समाज पर तुम्हारा कोई प्रभाव नहीं, मेरा यकीन इसके उलट है। एक स्त्री का प्रभाव बहुत बड़ा हो सकता है, ख़ासकर वर्तमान समाज की व्यवस्था या अव्यवस्था पर, जहाँ आत्मीयता एक तरह से ठंडी हो गई है, नैतिकता चुक गई है और दोनों को पुनर्जीवन की आवश्यकता है। स्त्री के सहयोग के बिना इन्हें नया जीवन नहीं दिया जा सकता। एक पूर्वाभास की तरह इस सत्य को पूरे विश्व में अनुभव किया जा सकता है और हर कोई प्रतीक्षा में स्त्रियों की ओर देख रहा है।
सबकुछ एक ओर छोड़कर, आओ एक नज़र अपने रूस पर डालें। ख़ासकर हर तरह के अनुचित, भृष्ट व्यवहार पर जो बहुतायत में हमारे सामने होता है। यह स्पष्ट है कि हर वर्ग के अधिकारी और कर्मचारी अपनी सेवाओं में जो अन्याय करते हैं, रिश्वत लेते हैं या ऐसा कोई भी गलत व्यवहार करते हैं, इसमें से अधिकतर का बड़ा कारण उनकी पत्नियों द्वारा उनसे की गई पैसे की माँग है, उच्च और निम्न दोनों ही वर्गों की पत्नियों द्वारा अपनी चमक-दमक बनाए रखने के लिए किए गए अनावश्यक खर्चे हैं, या फिर उन स्त्रियों के घरेलू जीवन का ख़ालीपन है जिसे वे अपने कर्तव्यों के मूल्यों की बजाय किसी आदर्श सपने पर अर्पित कर देती हैं जबकि वे मूल्य उनके सारे सपनों से अधिक सुंदर और ऊँचे हैं। यदि पत्नियाँ अपने कर्तव्य का एक छोटा सा हिस्सा भी पूरा करें तो पतियों को जितनी अशांति होती है उसका दसवाँ भाग भी उन्हें न झेलना पड़े। स्त्री की आत्मा एक पुरुष के लिए रक्षक तावीज़ की तरह है, उसे हर तरह के नैतिक संक्रमणों से बचाने वाला तावीज़। यह उसे सही रास्ते पर रखने वाली शक्ति है, जो भटकाव वाले रास्तों से सीधे रास्ते पर वापस ले आती है। दूसरी ओर स्त्री की आत्मा ही पुरुष का पाप भी हो सकती है, उसे हमेशा के लिए नष्ट कर सकती है। तुमने स्वयं ही इस बारे में इतनी सरलता से लिखा है जैसा अब तक किसी भी स्त्री ने नहीं लिखा।
पर तुम कहती हो कि अन्य सभी स्त्रियों के पास एक पेशा है और तुम्हारे पास कुछ नहीं। तुम हर जगह उन्हें काम पर देखती हो, जो खराब हो चुका है उसे सँभालते हुए, ठीक करते हुए या फिर आवश्यकता होने पर दोबारा बनाते हुए, कम शब्दों में कहा जाए तो हर प्रकार की सहायता करते हुए। तुम अकेले अपने लिए कुछ नहीं देख पातीं ओर दुखी होकर दोहराती हो, ‘मैं उनके स्थान पर क्यों नहीं हूँ?’ तुम यह जान लो कि यह सामान्य अंधेपन की अभिव्यक्ति है। हर किसी को ऐसा लगता है कि वह किसी अन्य व्यक्ति की स्थिति और स्थान पर बेहतर कर पाता, और वह अपनी वर्तमान स्थिति के कारण वैसा नहीं कर पा रहा। यही बात हमारी सभी बुराइयों की स्रोत है। हम सभी को इस समय यह देखना चाहिए कि हम अभी जहाँ हैं वहाँ अच्छा कैसे कर सकते हैं। मेरा विश्वास करो कि ईश्वर ने हमें बिना कारण ही वहाँ नहीं भेजा है जहाँ इस समय हम हैं। तुम्हें बस अपने चारों ओर ध्यान से देखने की आवश्यकता है। तुम पूछती हो कि तुम एक परिवार की माँ क्यों नहीं हो, जो माँ के कर्तव्यों का पालन कर उपकृत हो रही हो, वे कर्तव्य जो तुम्हें अब स्पष्ट दिखाई देते हैं; तुम्हारी संपत्ति, तुम्हारा घर अव्यवस्थित क्यों नहीं है कि तुम देश में रहने के लिए, घर को सँभालने के लिए बाध्य होतीं; तुम्हारा पति लोकहित के कठिन कार्यों में व्यस्त क्यों नहीं है कि तुम उसकी सहायता कर सकतीं और उसकी शक्ति बन सकतीं; और इस सबके बजाय तुम्हारे पास बस कुछ उथले खेल हैं, छिछला दुनियावी समाज है जो अब तुम्हें सबसे निर्जन स्थान से भी अधिक निर्जन लगता है।
पर वह संसार निर्जन नहीं है; यहाँ वही लोग हैं जो कहीं भी और होते हैं। वे भी बीमार हैं, संघर्षरत हैं, अभावग्रस्त हैं और बिना शब्दों के ही सहायता के लिए पुकार रहे हैं। वे यह भी नहीं जानते कि सहायता कैसे माँगी जाए। किस अभावग्रस्त की सहायता पहले करनी चाहिए: जो अब भी गलियों में जा सकता है या उसकी जिसके पास अपना हाथ फैलाने की भी शक्ति नहीं बची है? तुम कहती हो कि तुम नहीं जानतीं और तुम कल्पना नहीं कर सकतीं कि तुम भी संसार में किसी के काम आ सकती हो; कि एक स्त्री के पास शस्त्रों से भरा एक शस्त्रागार होना चाहिए, कि एक स्त्री को बुद्धिमती और विदुषी होना चाहिए, और तुम्हारा मन बस इसी ओर जाता है। और क्या तुम्हारा वही होना आवश्यक है जो तुम पहले ही हो? अगर कि तुम्हारे पास वे सब ज़रूरी हथियार होते? तुमने अपने बारे में जो कहा सब पूरी तरह सच है: यह सच है कि तुम बहुत युवा हो; तुम्हें न तो लोगों का ज्ञान है न जीवन का, कम शब्दों में कहूँ तो तुम्हारे पास ऐसा कुछ नहीं है जो दूसरों की गंभीर सहायता के लिए आवश्यक है; शायद तुम्हारे पास वह सब कभी न होगा, लेकिन तुम्हारे पास दूसरे हथियार हैं, जिनकी सहायता से तुम्हारे लिए सबकुछ संभव है। सबसे पहले तुम्हारे पास सुंदरता है; दूसरे, एक साफ-सुथरा, निष्कलंक नाम; और तीसरे तुम्हारे पास एक शुद्ध आत्मा की शक्ति है। स्त्री की सुंदरता अब भी एक रहस्य है। ऐसा अकारण नहीं था कि ईश्वर ने निर्णय किया कुछ स्त्रियाँ ही सुंदर होंगी; यह भी अकारण नहीं था कि सुंदरता हम सभी को बराबरी से आश्चर्यचकित कर देगी, उन्हें भी जो हर चीज़ के प्रति असंवेदनशील हैं, और उन्हें भी जो कुछ नहीं कर सकते। अगर एक स्त्री की मूर्खतापूर्ण सनक पूरे विश्व में उथल-पुथल ला सकती है, विद्वान से विद्वान पुरुषों को मूढ़ बनाकर छोड़ सकती है, तो क्या हो यदि यह सनक संवेदनशील हो, अच्छाई की ओर ले जाने वाली हो? किसी भी अन्य स्त्री की अपेक्षा एक सुंदर स्त्री कितनी सुंदरता ला सकती है! इसलिए, यह एक शक्तिशाली हथियार है।
पर तुम्हारी सुंदरता और भी विशिष्ट है, एक असाधारण निर्मलता का शुद्ध आकर्षण, जो केवल और केवल तुम में है, मैं नहीं जानता कि इसे शब्दों में कैसे परिभाषित करूँ पर तुम्हारी सुकुमार आत्मा हर किसी पर इसी तरह जगमगाया करती है। क्या तुम जानती हो कि हमारे सबसे स्वच्छंद युवाओं ने मेरे सामने यह स्वीकार किया है कि तुम्हारी उपस्थिति में वे द्विअर्थी बातें तो कर ही नहीं कर पाते, जैसा वे अन्य स्त्रियों के सामने करते हैं, पर वे एक आसान शब्द भी नहीं कह पाते क्योंकि वे महसूस करते हैं कि तुम्हारे सामने सब कुछ अशिष्ट है और डरते हैं कि उनके शब्दों का अर्थ कहीं असभ्य और अशोभनीय न हो जाए? यह तुम्हारा प्रभाव है, तुम्हारे वहाँ हुए बिना भी। कोई ऐसी मूर्खतापूर्ण बात सोच भी नहीं पाता कि कहीं उसे तुम्हारे सामने शर्मिंदा न होना पड़े; और यदि यह बातचीत क्षणिक भी हो, तब भी यह बेहतर होने की दिशा में उठाया गया पुरुष का पहला कदम है। तो इस तरह भी तुम्हारा यह हथियार शक्तिशाली है।
इसके अलावा तुम्हारे भीतर ईश्वर द्वारा तुम्हारी आत्मा में रोपी गई एक प्यास है, अच्छाई की प्यास। क्या तुम सोचती हो कि तुम अकारण ही इस प्यास द्वारा प्रेरित हो, जिसकी वजह से एक क्षण भी तुम्हें शाँति नहीं मिलती? कितना कम समय हुआ है तुम्हें एक कुलीन, बुद्धिमान पुरुष से विवाह किए हुए, उसमें एक पत्नी को सुखी रखने के सभी गुण हैं, पर घरेलू सुखों में डूबने की बजाय तुम्हें यह विचार सता रहा है कि जब तुम्हारे आस-पास इतने दुख बिखरे हैं तब तुम्हें इन सुखों का आनंद लेने का क्या अधिकार है। जब तुम हर क्षण आपदाओं की खबरें सुनती हो:आग, अकाल, असह्य आत्मिक पीड़ाएँ और परीक्षाएं, डरावनी मानसिक बीमारियाँ जिनसे हमारी पीढ़ियाँ संक्रमित हैं। मेरा विश्वास करो, यह अकारण नहीं है।
जिसकी भी आत्मा में लोगों के लिए ऐसी दिव्य व्यग्रता है, अपने सुखदायक मनोविनोद के साधनों के बीच भी ऐसा देवता सदृश अवसाद है, वह उनके लिए बहुत कर सकता है, सचमुच बहुत कर सकता है; उसका काम हर जगह है, क्योंकि लोग हर जगह हैं। जिसके बीच होना तुम्हारा भाग्य है, उस संसार से भागो मत, ईश्वर से झगड़ा मत करो। तुम्हारे भीतर वह अलौकिक शक्ति है जिसकी अभी इस संसार को आवश्यकता है: क्योंकि तुम लगातार पुरुष की सहायता करने की आकांक्षा रखती हो, इस कारण तुम्हारी आवाज़ में कुछ ऐसे स्वर आ गए हैं जो सभी के लिए जाने-पहचाने हैं, तो जब तुम बोलो और तुम्हारी आवाज़ के साथ तुम्हारी निर्मल दृष्टि भी हो और वह मुस्कान भी जो तुम्हारे होंठों से कभी नहीं जाती, जो केवल तुम्हारी है, तो सभी को ऐसा लगे कि स्वर्ग से उतरकर उनकी कोई बहन उनसे बात कर रही है। तुम्हारी आवाज़ बहुत शक्तिशाली हो चुकी है; तुम चाहो तो तुम ऐसी तानाशाह बन सकती हो कि हम में से कोई न बन सके। तुम बिना शब्दों के आदेश दो; अपनी उपस्थिति मात्र से; अपनी निर्बलता से आदेश दो, जिस पर तुम बहुत रुष्ट रहती हो; अपने स्त्रीगत आकर्षण से आदेश दो! जिसे आज के संसार की स्त्रियों ने खो दिया है। अपनी दुर्बल अनुभवहीनता से ही तुम उस बुद्धिमती स्त्री से कहीं अधिक कर सकती हो जो सभी प्रयत्न अपने गर्वीले साहस के वश होकर करती है: उसके सबसे सघन विश्वास, जिनके द्वारा वह वर्तमान संसार को सही रास्ते पर लाना चाह सकती थी, वे सब घटिया चुटकुलों की शक्ल में उसके सिर पर ही आ बरसेंगे; पर जब तुम एक खामोश नज़र से, बिना कुछ बोले हम में से किसी को बेहतर होने के लिए कहोगी, तो चुटकुला कहने के लिए किसी के होंठों में हिलने की हिम्मत न रहेगी।
तुम सांसारिक भ्रष्टताओं के बारे में बात करने से इतना क्यों डरती हो? ये सब सचमुच हमारे आस-पास से हैं और उससे कहीं ज़्यादा मात्रा में जितना तुम सोच सकती हो, पर तुम शायद इस बारे में जानती हो। संसार के दयनीय प्रलोभनों का डर क्या सचमुच तुम्हारे लिए है? अपनी मुस्कान की शुभ्रता साथ लिए, इस संसार तक निडर होकर जाओ। संसार में ऐसे घुसो जैसे बीमारों से भरे एक अस्पताल में, पर उस चिकित्सक की तरह नहीं जो एक रूखा पुर्ज़ा लिखता हो, कड़वी दवाएँ देता हो; तुम्हारा काम यह जाँचना नहीं है कि कौन किस बीमारी का रोगी है। तुम्हारे पास जाँचने की योग्यता नहीं, रोगी को ठीक करने की भी नहीं और मैं तुम्हें वह सलाह नहीं दूँगा जो ऐसा करने में सक्षम किसी और महिला को दी जा सकती थी। तुम्हारा कर्तव्य बस इतना ही है कि तुम अपनी मुस्कान रोगी को दे सको, और वह आवाज़ जिसमें एक पुरुष अपनी बहन को स्वर्ग से उतरते सुन सकता है, बस इससे अधिक कुछ नहीं। कुछ लोगों के पास देर तक मत रुको, दूसरों के पास शीघ्रता से जाओ क्योंकि तुम्हारी आवश्यकता हर जगह है। पृथ्वी के सभी कोनों में वे प्रतीक्षा कर रहे हैं, और वे सिर्फ उन जाने-पहचाने स्वरों की प्रतीक्षा कर रहे हैं, वही स्वर जो तुम्हारा है। सामाजिक बातचीत के लिए मत जाओ; समाज को वे बातें करने के लिए बाध्य कर दो, जो तुम करती हो। ईश्वर ज्ञान के उस प्रदर्शन से तुम्हारी रक्षा करेगा, उन वार्तालापों से तुम्हें बचाएगा जो हमारे वर्तमान अकेलेपन से उपजते हैं। संसार में सबसे खुले हृदयों की कथाएँ लेकर जाओ, जैसी कहानियाँ तुम सामान्यत: सुनाया करती हो जब तुम अपने घर पर अपने मित्रों के बीच होती हो, जब तुम्हारी बात का हर शब्द जगमगा रहा होता है और ऐसा लगता है कि जो तुम्हें सुन रहे हैं उनकी आत्माएँ प्रसन्न होकर मनुष्य के स्वर्गीय बचपन के बारे में देवदूतों से बातें कर रही हैं। यही वे शब्द हैं, जिनका परिचय तुम्हें इस संसार से कराना है।
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1846 में अपनी किसी महिला मित्र को लिखा निकोलाइ गोगोल का यह पत्र देश और काल बदल जाने के बाद भी आज उतना ही प्रासंगिक है जितना उस समय के रूस में रहा होगा। इस उद्धरण को उनकी पुस्तक ‘सलेक्टेड पैसेजेस फ़्रॉम कोरसपोंडेस विद फ्रेंड्स’ से लिया गया है। रूसी भाषा से अंग्रेज़ी में अनुवाद जेसी ज़ेल्डिन ने और अंग्रेज़ी से हिंदी में भावानुवाद प्रदीपिका ने किया है।
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