तुझ में बसी है मेरी जान...
बचपन की कहानियां कभी जेहन से नहीं उतरतीं. किसी न किसी बहाने याद आ ही जाती हैं. या कहें कि बड़े बुज़ुर्ग कहानियों की शक्ल में अपने अनुभव छोड़ जाते हैं नई पीढ़ी के लिए जो गाहे बगाहे काम आते रहते हैं. इस वक़्त जो कहानी याद आ रही है वो है उस जादूगर की जो अपनी जान को तोते में छुपा के रखता था. जान तोते में हो तो फिर जादूगर को किस बात का डर, कोई भी उसे मार नहीं सकता था.
उस वक़्त कहानी सुन के लगता था कि काश हमें भी जादू आता तो हम भी अपनी जान किसी डॉल या टेडी में छुपा देते. कुछ और बड़े हुए तो इस कांसेप्ट पे हँसी आने लगी. पर अब लगता है कि वो सिर्फ कहानी नहीं थी. सचमुच ही हम सब उस जादूगर जैसे होते हैं. हमें कोई न कोई चाहिए होता है अपनी जान छुपाने के लिए. जाने क्यूँ खुद में अपनी जान रखना इतना मुश्किल हो जाता है.
कोई अपनी जान अपने बच्चे में छुपाता है तो कोई अपनी प्रेमिका में. किसी की जान कुर्सी में होती है तो किसी की बैंक की तिजोरियों में. आज फेसबुक के पन्ने पलटते हुए देखा कि सबसे ज़्यादा लोगों की जान आज सचिन रमेश तेंदुलकर में अटकी हुई थी. मुझे तो कुछ समझ ही नहीं आ रहा था.
आजकल तो जैसे एक ट्रेंड सा चल पड़ा है. ज़रा भी कहीं कुछ होता है लोग इमोशनल हो जाते हैं. अभी रेशमा जी का स्वर्गवास हुआ, अचानक से कई लोगों की जान आकर उनके गीतों में जा बसी. कुछ ऐसा ही मन्ना डे के साथ हुआ था.
मैं ज़रा कंफ्यूज हूँ, या तो लोगों का भरोसा नहीं रह गया है किसी एक चीज़ में कि वे बार बार जगहें बदलते रहते हैं अपनी जान को छुपाने की. या फिर आजकल लोगों के पास कई कई जानें होती हैं. एक यहाँ एक वहां...एक सचिन तेंदुलकर में दूसरी मन्ना डे में तीसरी नई-नई गर्लफ्रेंड में. क्या पता... लगता है अब पुरानी कहानी को अपडेट करने का वक़्त आ गया है.
उस वक़्त कहानी सुन के लगता था कि काश हमें भी जादू आता तो हम भी अपनी जान किसी डॉल या टेडी में छुपा देते. कुछ और बड़े हुए तो इस कांसेप्ट पे हँसी आने लगी. पर अब लगता है कि वो सिर्फ कहानी नहीं थी. सचमुच ही हम सब उस जादूगर जैसे होते हैं. हमें कोई न कोई चाहिए होता है अपनी जान छुपाने के लिए. जाने क्यूँ खुद में अपनी जान रखना इतना मुश्किल हो जाता है.
कोई अपनी जान अपने बच्चे में छुपाता है तो कोई अपनी प्रेमिका में. किसी की जान कुर्सी में होती है तो किसी की बैंक की तिजोरियों में. आज फेसबुक के पन्ने पलटते हुए देखा कि सबसे ज़्यादा लोगों की जान आज सचिन रमेश तेंदुलकर में अटकी हुई थी. मुझे तो कुछ समझ ही नहीं आ रहा था.
आजकल तो जैसे एक ट्रेंड सा चल पड़ा है. ज़रा भी कहीं कुछ होता है लोग इमोशनल हो जाते हैं. अभी रेशमा जी का स्वर्गवास हुआ, अचानक से कई लोगों की जान आकर उनके गीतों में जा बसी. कुछ ऐसा ही मन्ना डे के साथ हुआ था.
मैं ज़रा कंफ्यूज हूँ, या तो लोगों का भरोसा नहीं रह गया है किसी एक चीज़ में कि वे बार बार जगहें बदलते रहते हैं अपनी जान को छुपाने की. या फिर आजकल लोगों के पास कई कई जानें होती हैं. एक यहाँ एक वहां...एक सचिन तेंदुलकर में दूसरी मन्ना डे में तीसरी नई-नई गर्लफ्रेंड में. क्या पता... लगता है अब पुरानी कहानी को अपडेट करने का वक़्त आ गया है.
लिखो न कुछ ........
ReplyDeleteKabile taarif !
ReplyDeleteबहुत उम्दा लगा लेखन लेकिन मुझे केवल "तीसरी नई-नई गर्लफ्रेंड में" लिखने पर एतराज है वहां पर "बॉयफ्रेंड" भी क्यों नहीं लिखा गया ? :)
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