यह कैसी 'एलकैमी ऑफ़ डिज़ायर'...?
बहुत सारे विचार, बहुत सारी आवाजें एक साथ उमड़ घुमड़ रही हैं मन में जैसे प्रेशर कुकर में पकती खिचड़ी में दाल और चावल. शुतुरमुर्ग की तरह आँख बंद कर लेने का भी सहारा नहीं. शब्दों से बनी तस्वीर को ना तो किसी रौशनी की ही ज़रुरत और न ही ऑप्टिकल नर्व की .
एक तरफ़ से आवाज़ आ रही है 'सेक्स इज़ नॉट द ग्रेटेस्ट ग्लू बिटविन टू पीपल, लव इज़'. दुसरे कोने में कोई सधी हुई आवाज़ में कह रहा है ' अ बैड लैप्स ऑफ़ जजमेंट एंड एन औफ़ुल रीडिंग ऑफ़ द सिटुएशन हैड लेड टू एन अनफॉरचुनेट इंसिडेंट'.
एक आवाज़ और भी है, पॉवर, पैसे और नाम के नशे में चूर 'दिस इज़ दी इज़ीएस्ट वे फॉर यू टू कीप द जॉब..'और आख़िर में एक गंभीर महानता का आवरण ओढ़े एक और आवाज़ ' आई हैव आलरेडी अनकंडीशनली अपोलोजाइज्ड फॉर माय मिसकंडक्ट टू द कंसर्नड जर्नलिस्ट, बट आई फील टू एटोन फरदर'
उफ़्फ़ सर चकरा रहा है मेरा... किस आवाज़ को सच मानूं. एक तरफ़ हैं एलकैमी ऑफ़ डिज़ायर जैसी किताब के लेखक, तहलका जैसी अवार्ड विनिंग पत्रिका के मुख्य संपादक तरुण तेजपाल और दूसरी तरफ है एक ऐसा आदमी जो अपने ऑफिस में काम करने वाली लड़की पर यौन उत्पीड़न का प्रयास करता है. (यह बताना भी व्यर्थ है कि वह लड़की न सिर्फ उसके पुराने सहयोगी की बेटी है बल्कि वह उसकी खुद की बेटी की भी दोस्त है.)
वाक़ई इन दोनों आदमियों के एक होने पर यकीन के पाना मुश्किल होते हुए भी बहुत मुश्किल नहीं है. सवाल तो यही उठता है न कि एक सुप्रसिद्ध लेखक, संपादक, एक बुद्धिजीवी ऐसी हरकत कैसे कर सकता है. मानव अधिकारों की बात करने वाला आदमी औरत के प्रति ऐसा रवैया कैसे रख सकता है ?
इस तरह का रवैया तो बस कम पढ़े लिखे, निचले तबके के लोगों की ही बपौती समझा जाता है न. पर सभ्य समाज की सभ्यता का खोल बड़ा कच्चा है. अक्सर ही उतर जाता रहा है. फिर चाहे खुद को सनकी बुड्ढा कहने वाले राजेन्द्र यादव हों या फिर 'पूज्य' आसाराम या फिर तरुण तेजपाल, मिसालें देखी जाएँ तो कम नहीं पड़ने की.
मुझे बस इतना समझ नहीं आता कि दिसम्बर का दिल्ली गैंग रेप और मुंबई का फ़ोटोजर्नलिस्ट बलात्कार कांड तो असामाजिक तत्वों की देन थे. पर इन अति सामजिक तत्वों का क्या किया जाये जो खुद ही गुनाह करते हैं, क़ुबूल करते हैं और फिर खुद को छह महीने की छूट्टी पर जाने की संगीन सज़ा देकर अपनी सामाजिक ज़िम्मेदारी को पूरी गंभीरता से निभाते हैं.
मैंने अभी तक इन महानुभाव की किताब 'एलकैमी ऑफ़ डिज़ायर' नहीं पढ़ी.अब सोच रही हूँ इनके नए कारनामे की रौशनी में इस किताब को पढ़ ही लूँ, शायद इस शर्मनाक हरकत और इसकी डिज़ायर के पीछे की एलकैमी मुझे समझ आ जाये.
एक तरफ़ से आवाज़ आ रही है 'सेक्स इज़ नॉट द ग्रेटेस्ट ग्लू बिटविन टू पीपल, लव इज़'. दुसरे कोने में कोई सधी हुई आवाज़ में कह रहा है ' अ बैड लैप्स ऑफ़ जजमेंट एंड एन औफ़ुल रीडिंग ऑफ़ द सिटुएशन हैड लेड टू एन अनफॉरचुनेट इंसिडेंट'.
एक आवाज़ और भी है, पॉवर, पैसे और नाम के नशे में चूर 'दिस इज़ दी इज़ीएस्ट वे फॉर यू टू कीप द जॉब..'और आख़िर में एक गंभीर महानता का आवरण ओढ़े एक और आवाज़ ' आई हैव आलरेडी अनकंडीशनली अपोलोजाइज्ड फॉर माय मिसकंडक्ट टू द कंसर्नड जर्नलिस्ट, बट आई फील टू एटोन फरदर'
उफ़्फ़ सर चकरा रहा है मेरा... किस आवाज़ को सच मानूं. एक तरफ़ हैं एलकैमी ऑफ़ डिज़ायर जैसी किताब के लेखक, तहलका जैसी अवार्ड विनिंग पत्रिका के मुख्य संपादक तरुण तेजपाल और दूसरी तरफ है एक ऐसा आदमी जो अपने ऑफिस में काम करने वाली लड़की पर यौन उत्पीड़न का प्रयास करता है. (यह बताना भी व्यर्थ है कि वह लड़की न सिर्फ उसके पुराने सहयोगी की बेटी है बल्कि वह उसकी खुद की बेटी की भी दोस्त है.)
वाक़ई इन दोनों आदमियों के एक होने पर यकीन के पाना मुश्किल होते हुए भी बहुत मुश्किल नहीं है. सवाल तो यही उठता है न कि एक सुप्रसिद्ध लेखक, संपादक, एक बुद्धिजीवी ऐसी हरकत कैसे कर सकता है. मानव अधिकारों की बात करने वाला आदमी औरत के प्रति ऐसा रवैया कैसे रख सकता है ?
इस तरह का रवैया तो बस कम पढ़े लिखे, निचले तबके के लोगों की ही बपौती समझा जाता है न. पर सभ्य समाज की सभ्यता का खोल बड़ा कच्चा है. अक्सर ही उतर जाता रहा है. फिर चाहे खुद को सनकी बुड्ढा कहने वाले राजेन्द्र यादव हों या फिर 'पूज्य' आसाराम या फिर तरुण तेजपाल, मिसालें देखी जाएँ तो कम नहीं पड़ने की.
मुझे बस इतना समझ नहीं आता कि दिसम्बर का दिल्ली गैंग रेप और मुंबई का फ़ोटोजर्नलिस्ट बलात्कार कांड तो असामाजिक तत्वों की देन थे. पर इन अति सामजिक तत्वों का क्या किया जाये जो खुद ही गुनाह करते हैं, क़ुबूल करते हैं और फिर खुद को छह महीने की छूट्टी पर जाने की संगीन सज़ा देकर अपनी सामाजिक ज़िम्मेदारी को पूरी गंभीरता से निभाते हैं.
मैंने अभी तक इन महानुभाव की किताब 'एलकैमी ऑफ़ डिज़ायर' नहीं पढ़ी.अब सोच रही हूँ इनके नए कारनामे की रौशनी में इस किताब को पढ़ ही लूँ, शायद इस शर्मनाक हरकत और इसकी डिज़ायर के पीछे की एलकैमी मुझे समझ आ जाये.
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