परवाना ही क्यूँ जल जाये



शमां से रौशन सारी महफ़िल फिर ये किस्सा समझ ना आये

परवाना ही क्यूँ जल जाये

तोल रवायत के पलड़े पर जात के दीन के सिक्कों से
जिसने चाहा खुद को भुला के उसको कैसे कोई भुलाये

दीवाना ही क्यूँ जल जाये

किस्सागो दुनिया की फ़ितरत बदली है न बदलेगी
एक कहानी लिखे एक लिखने से पहले ही मिट जाये

अफ़साना ही क्यूँ जल जाये

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